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कविता

छिप जाना

मारीना त्स्वेतायेवा

अनुवाद - वरयाम सिंह


काल और गुरुत्‍वाकर्षण पर
यही होगी मेरी चरम विजय
कि चली जाऊँ यहाँ से
पाँवों का एक भी निशान छोड़े बिना।

या नहीं नहीं कहते कह डालूँ-हाँ
या गायब हो जाऊँ दर्पणों से
जिस तरह गायब हो गये थे ल्‍येरमंतोव
कॉकेशिया के पहाड़ों में
चट्टानों को तनिक भी परेशान किये बिना।

या सबसे अच्‍छा शगल यह होगा
कि सेवास्तियान बाख की अँगुलियों से
छूकर देखूँ ऑर्गन की ध्‍वनियों को,
या बिखर जाऊँ इधर-उधर
अस्थिकलश में अपनी अस्थियाँ छोड़े बिना।

या धोखा देकर ले लूँ
जो कुछ लेना है मुझे,
या निकल जाऊँ बाहर
हर तरह की विराटताओं से।
या छिप जाऊँ
काल के महासागर में
जलकणों को उद्वेलित किये बिना।

 


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